बुधवार, 9 मार्च 2011

हम ज़रूर जीतेंगे


 
इन दिनों हर खेल प्रेमी की बस यही दुआ है कि" भारत एक बार फिर विश्व क्रिकेट का शहंशाह बने".पूरा भारतवर्ष इस समय क्रिकेट फीवर कि गिरफ्त में है ,चाहे वो व्यक्ति किसी भी धर्मं का हो या किसी भी उम्र वय का.देखकर बड़ी ख़ुशी होती है कि कम से कम एक मुददा तो ऐसा है जिसपर हर व्यक्ति की एक ही राय है "विश्व कप भारत ही जीते ".चाय की दुकानों पर, ट्रेन के डिब्बो में या जहाँ भी चार पाँच लोग खड़े हो जाते हैं गाहे बगाहे क्रिकेट उनके लिए एक हॉटकेक है, और हो भी क्यों ना आखिर महंगाई की मार झेलती जनता ,करियर में सफल होने का दबाव और भ्रस्ताचार से लाचार देश को इसी खेल ने ही समय-समय पर गर्व करने का मौका दिया है.
                खैर ,हम सब की दुआए भारत के साथ हैं "हम ज़रूर जीतेंगे .सिर्फ क्रिकेट ही नहीं हम तो यह चाहते है कि हर खेल प्रतिस्पर्धा में भारत जीते ,नहीं तो अपनी उपस्थिति  तो अवश्य दर्ज कराये .लेकिन क्या हमारी सरकार ऐसा चाहती है ,मुझे तो नहीं लगता है .मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलो में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के बाद भी पिछले दिनों आये बजट में खेलो के विकास के लिए कुछ भी नहीं किया गया है.मुझे उम्मीद थी कि शायद इस बार इसके लिए धन का प्रावधान ज़रूर होगा .क्या हमारी सरकारों को सिर्फ मेडल के बदले खिलाड़ियों को धन देकर अपना काम पूरा समझना चाहिए .
                भारत में खेलों में  करियर बनाना या ऐसा करने का सपना देखना  आज भी काफी मुश्किल है .ये तो हम नहीं कह सकते कि हमारे पास धन कि कमी है.कमी है तो सिर्फ एक इच्छाशक्ति की .इसलिए हमें मुश्किल से ऐसे खिलाड़ियों  के नाम याद आते हैं जिन्होंने हाकी या अन्य खेलो को अपना जीवन दिया है .हमें ये तो याद है की भारत ने राष्ट्रमंडल खेलो में १०१ पदक जीते लेकिन क्या हमने उनके बारे में सोंचा है जिन्होंने सुविधाओ के आभाव में खेल को अलविदा कह दिया है .क्या हम इयान थोर्प या माइकल फेलप्स जैसे तैराक नहीं दे सकते .आप गाँव में जायेंगे तो पानी में बड़ी कुशलता से विपरीत धारा में तैरते और करतब  करते बच्चो को देखकर उनमे देश का प्रतिनिधितव करने की सम्भावना  पा सकते हैं  .झारखण्ड के आदिवासी क्षेत्रो में लोग आज भी धनुष बाड़ का प्रयोग करते हैं क्या उनमे से कोई निशाने बाज़ नहीं बन सकता ,उनका हाथ तो पहले से ही उस पर सेट होता है .ग्रामीण क्षेत्रो में लोग आज भी यातायात के लिए साइकिल का ही इस्तेमाल करते हैं. इन जैसे जन्मजात प्रतिभाशाली लोगो को  बस ज़रुरत हैं सुविधाए देने की और उनका  सही मार्गदर्शन करने  की .हमारे पास भी पदको का अम्बार होगा .
                सोंचकर देखिए कितना अच्छा लगता है जब हम फिर से हाकी में स्वर्ण पदक जीतेंगे .पूरा भारत टीम के फ़ुटबाल विश्वकप जीतने की दुआ करेगा .विश्व स्तर पर आयोजित होने वाले खेलो में भारत सर्वाधिक पदक जीतेगा .बस, ज़रुरत है खेलो पर ध्यान देने की और सही नीतिया बनाने की और उन पर अमल करने की .हमारे पास भी क्षमता है की हम विश्वस्तर पर रोज़र फेडरर  और रोनाल्डो जैसे खिलाडी दे सके. 

 
 







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