सोमवार, 8 अगस्त 2011

ज़रुरत है एक पहल की


राजनीति एक ऐसा विषय है जिस पर प्रत्येक व्यक्ति के पास सवालों और तर्कों की कोई कमी नहीं है। संयोग से भारत की राजनीति है भी ऐसी जहां कुछ भी निश्चित नहीं है, मतलब कहने और सुनने को बहुत कुछ है यहाँ चाहे वह राजनेताओं कि निष्ठां हो या चुनाव परिणामों में किसी पार्टी का आश्चर्यजनक रूप से बहुमत में जाना .मेरे ख्याल से 'भारतीय राजनीति आज एक ऐसे व्यवसाय का रूप ले चुकी है जहा सिर्फ और सिर्फ 'अवसर और लाभ' का ही महत्त्व है। अगर हाल कि ही घटनाओं का जिक्र करें तो संसद का मानसून सत्र प्रारंभ हो चुका है और पहले दो दिन की कार्यवाही वैसी ही है जैसी कि उम्मीद थी। विपक्ष के पास सरकार को घेरने के कई मुद्दे हैं, मसलन जी स्पेक्ट्रम घोटाला, महंगाई और भ्रस्ताचार इसके अलावा एक विशेष मुद्दा जिस पर प्रत्येक भारतवासी कि नज़र है 'लोकपाल विधेयक' जिसे पहले ही सब नकार चुके हैं। यह सच है कि सरकार ऐसा कोई विधेयक नहीं लाना चाहेगी, जिससे उच्च पदों पर बैठे लोग विश्वसनीयता के कठघरे में खड़े हों। दूसरी तरफ 'जनलोकपाल विधेयक' समर्थक अन्ना हजारे इसे पहले ही नकार चुके हैं। ऐसे में एक रास्ता यह भी हो सकता है कि अन्ना टीम और सरकार के बीच आपसी सहमति से ऐसा बिल पारित हो जिसमे दोनों की ही शर्तें हो जिससे भ्रस्ताचार से जूझ रहे देश को एक उम्मीद कि एक किरण तो दिखे। यह भी सच है कि इससे भ्रस्ताचार पूर्णतः मिट तो नहीं जाएगा पर इससे कुछ तो नियंत्रण ज़रूर लगेगा। समय -समय पर सरकार और टीम अन्ना मिलकर इसकी समीक्षा करे , और इसमें सुधार भी करे क्या भ्रस्ताचार ख़त्म करने कि दिशा में यह पहल कारगर नहीं हो सकती ?




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