प्राकृतिक आपदाए और हम
प्राकृतिक आपदाए हमेशा हमारी कल्पना और उम्मीद से ज्यादा भीषण होती हैं. हमने भले ही खुद को वैज्ञानिक स्तर पर कितना भी प्रगतिशील एवं एडवांस बना लिया हो ,लेकिन प्रकृति के प्रकोप के आगे सबकुछ निरर्थक लगता है. कम से कम जापान के उत्तर-पूर्वी इलाके में आये विनाशकारी भूकंप और सुनामी को देखकर तो यही लगता है. वहां अब तक लगभग १०,000 से भी ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं लाखों बेघर हैं और मौजूदा किल्लतों
का सामना कर रहे हैं.हम हर बार प्रकृति के आगे एक बेबस एवं लाचार योढ्हा बनकर रह जाते हैं. क्या इन सब के जिम्मेदार सिर्फ हम ही नहीं हैं ?अगर हम सिर्फ पिछले दस वर्षो पर गौर करें तो हम पाते हैं कि इन आपदाओं कि संख्या में लगातार इजाफा ही हुआ है, पूरे विश्व ने कई बार इस विभीषिका को झेला है. कहीं बाढ़, कहीं भूकंप तो कहीं आग ने हमारी तथाकथित वैज्ञानिक प्रगति को बौना साबित किया है. हम विश्लेषण करे तो पायेंगे कि हमने विश्व स्तर पर खुद को स्थापित करने के लिए लगातार प्रकृति का दोहन किया है. जिसके कारण हम जलवायु परिवर्तन एवं भौगोलिक बदलावों के वाहक बनें, परिणामस्वरुप हम एक के बाद एक विनाश का सामना कर रहे हैं और हर बार सिर्फ अफ़सोस जताकर रह जाते हैं. कहना गलत ना होगा कि यदि हमने पर्यावरण एवं प्रकृति का ख्याल न रखा तो हमें इन संकटों कि आदत डालनी होगी . इसलिए ज़रूरी है कि अब हम पर्यावरण और प्रकृति को ध्यान में रखकर स्थायी विकास का प्रयास करें. अन्यथा हो सकता है एक दिन हमारी स्थिति बयान करने लायक भी ना रहे.