सोमवार, 30 मई 2011

अभी तो और चलना है



मै चलता रहता हूँ
धीरे-धीरे
हर रोज़  एक मंजिल,तय करता हूँ,
पर
हर मंजिल यही कहती है ,
अभी तो और चलना है.
एक नयी उम्मीद,
दोगुने उत्साह से
आगे बढ़ता हूँ मै,
मेरे बढ़ते कदम ,
थकने लगते है,
मन निराश हो जाता है,
उन मंजिलों को देखकर
जो सिर्फ
'चुनिन्दा' और 'खास' लोगों के लिए है
फिर
कहता हूँ खुद से
अभी तो और चलना है.
वो खास,
 वो चुनिन्दा लोग भी,
कभी,
 मेरी तरह थे
एक पथिक  
जो सोंचते होंगे
अभी तो और चलना है
सच है  क़दमों के,
 बढाते रहने से ही  
कोई पथिक
पहुँचता है अपने गंतव्य तक.
जो यह सोच कर चलना शुरू करता है
अभी तो और चलना है.