मेरी माउन्ट आबू यात्रा
मित्रों! यह पोस्ट आज मैं एक लम्बे समयांतराल के बाद लिख रहा हूँ । लेकिन इतने दिनों तक न लिखने का कारण समयाभाव तो बिलकुल नहीं था, बल्कि कुछ ऐसा लिखने कि इच्छा थी जो नव्य, नया और नवीन हो, जाहिर है ऐसा लिखने के लिए जीवन में कुछ नया होना भी आवश्यक है। अब मेरे जीवन में नया क्या हुआ इसका अंदाजा तो आपको लेख का शीर्षक पढ़कर ही हो गया होगा तो अब मै आपसे अपनी यात्रा के अनुभव एवं गंतव्य की प्राकृतिक सुन्दरता का वर्णन करता चलता हूँ ।
सचमुच कितना सुखद ,कितना अद्भुत और बेहद दर्शनीय स्थल है यह । यही विचार सर्वप्रथम आते हैं वहां । सीनरी और फिल्मों के बाद वास्तव में नदियों , झरनों और पहाड़ों को इतना नज़दीक से देखने का अद्भुत एहसास था ये । बादलों से ढके पहाड़ और इनके बीच से निकलते झरने, सचमुच विहंगम द्रश्यों की एक श्रंखला । जहां कुछ भी बनावटी नहीं था । एक तरफ तो धूप दूसरी तरफ शाम होने जैसी अनुभूति । एक ही साथ हम दो वक़्त होते देख रहे थे । ऐसा लग रहा था जैसे इन पहाड़ों की चोटियों को सिर्फ हमारे लिए सजाया हो प्रकृति ने ,जिसके लिए हमारे पास वक़्त नहीं हैं । लेकिन अब कुछ दिन तो यहीं बिताना है ऐसा सोंचकर हम आगे बढ़ते रहे . अब हमारा अगला पड़ाव था "नक्की झील " । पहाड़ों कि सुरम्य वादियाँ , उसके बीच स्थित झील में बोटिंग करना बेहद रोमांचकारी अनुभव था , जिसे सिर्फ वहाँ जाकर ही महसूस किया जा सकता है ।
बोटिंग करने के बाद अब हमने जहां का रुख किया वो तो अपने आप में अजूबा है । मेरे विचार से पर्यटन की अपार सम्भावना अपने में समेटे "जैन दिल्वारा मंदिर " । ये मंदिर सन १२३१ में बनकर तैयार हुआ था , और आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि उस समय इसकी लागत "१२ करोड़" रूपए थी । मंदिर कि दीवारों, छतों यहाँ तक कि प्रतेक कोने कि शिल्पकला प्रशंसा के लिए सहज ही आपको विवश कर देगी । मंदिर में कैमरा ले जाना मना था अतः वहा की शिल्प कला मानस पटल पर अंकित हो गयी और हमेशा रहेगी ।
इसके अलावा पहाड़ों कि वादियों पर बनाए गए पार्क , जो बेहद सुकून भरे स्थानों में से हैं । सचमुच बेहद खूबसूरत और लगभग अवर्णनीय है यह हिल स्टेशन। मित्रों ,किसी हिल स्टेशन की ये मेरी पहली यात्रा थी । निश्चित रूप से इस प्रकार कि यात्राये ज़िन्दगी के प्रति हमारे उत्साह को बढ़ाती तो हैं ही साथ ही हमें सकारात्मक ऊर्जा से भर भी देती हैं । वो उत्साह जो बेहद ज़रूरी है जीवन के लिए ।
मित्रों ,जीवन का एक ऐसा पड़ाव जहाँ प्रत्येक युवा अपने करियर को आकर देने और अपने सपनो को सच कर दिखाने की प्रारंभिक एवं संवेदनशील अवस्था में होता है । उसकी आँखों में असीमित सपने होते हैं । वो अपने सपनों को सफलता की बुलंदियों पर ले जाना चाहता है । लगभग इन्हीं स्थितियों से आजकल मैं भी गुजर रहा हूँ । पर जब मुझे 'हिल स्टेशन ' जाने का एक प्रस्ताव मिला तो , देशाटन के प्रति अपने उत्साह एवं दर्शनीय स्थानों के प्रति अपनी जिज्ञासा के कारण मै इसे टाल न सका । अतः मै अपने मित्रों और एक शिक्षक के साथ यात्रा के लिए निकल पड़ा "रोज़मर्रा के जीवन से दूर कुछ समय प्रकृति के साथ बिताने के लिए" .
यहाँ पर मैं आपको बता दूं की मेरी यात्रा '१४ सितम्बर ' को शाम ७:२० पर प्रारंभ होनी थी, पर इस बार लेटलतीफी के लिए मुझे भारतीय रेल से कोई शिकायत ना थी , क्योंकि इस बार न तो मै अकेला था और ना ही समय की कोई पाबंदी थी । अंततः निर्धारित समय से ४० मिनट पश्चात हमारी यात्रा "फरक्का एक्सप्रेस" द्वारा लखनऊ जंक्शन से प्रारंभ हुई जो कानपूर होते हुए दिल्ली की ओर प्रस्थान कर चुकी थी । मित्रों , लखनऊ से दिल्ली की यात्रा बड़े आराम से और आनंद से गुजरी । दोस्तों के साथ खाना , मस्ती करना इसके अलावा ज़रूरी और गैर ज़रूरी मुद्दों पर बात करना, पता ही नहीं चला कि कब रात के २ बज गए , पर नींद किसे आनी थी क्योंकि ये वो सफ़र था जिसे हमने खुद अपनी मर्ज़ी से चुना था ,खुद के लिए । खैर एक दूसरे को परेशान करते ,बातें करते तो कभी वर्तमान व्यवस्था पर अफ़सोस जताते हुए और अपने जीवन के अनुभवों को शेयर करते हुए , हम सुबह दिल्ली पहुँच चुके थे । यहाँ से अब हमें 'रोहिल्ला सराय' स्टेशन से "पोरबंदर एक्सप्रेस" द्वारा अपने गंतव्य माउन्ट आबू जाना था । यहाँ पर ट्रेन अपने निर्धारित समय से आई . इसके बाद हमारी अगली यात्रा प्रारंभ हो गयी । राजस्थान में प्रवेश करने पर मेरी एक भ्रान्ति टूट गयी कि यहाँ हरे भरे पेड़ पौधे नहीं होंगे पर वहाँ तो इसकी कोई कमी ही न थी । पहाड़ों और मैदानों के दर्शन कराती हुई ट्रेन आगे बढती जा रही थी और हम प्रकृति कि सुन्दरता को अपने मन में बसाते हुए कैमरे में कैद करते जा रहे थे । उस समय रह रहकर दिल में ये ख्याल भी आ रहे थे कि क्या हमारा जीवन सिर्फ धन कमाने और अपने जीवन स्तर को ऊंचा उठाने तक ही सीमित हैं ? क्या हमारी महत्वआकाँक्षाओं ने हमें प्रकृति से दूर नहीं कर दिया है पर , शायद मानव प्रकृति ही ऐसी है , जहां सबसे ज्यादा कमाना और और सबसे महत्वपूर्ण बनना ही हमारा मकसद है । खैर रात्रि १० बजे हम माउन्ट आबू पहुँच चुके थे, जहां पर अब हमें प्रकृति की अनमोल धरोहर एवं उपहारों से रूबरू होना था . यात्रा कि थकान के कारण हम सभी जल्दी सो गए । अगली सुबह हम माउन्ट दर्शनके लिए रवाना हुए ।सचमुच कितना सुखद ,कितना अद्भुत और बेहद दर्शनीय स्थल है यह । यही विचार सर्वप्रथम आते हैं वहां । सीनरी और फिल्मों के बाद वास्तव में नदियों , झरनों और पहाड़ों को इतना नज़दीक से देखने का अद्भुत एहसास था ये । बादलों से ढके पहाड़ और इनके बीच से निकलते झरने, सचमुच विहंगम द्रश्यों की एक श्रंखला । जहां कुछ भी बनावटी नहीं था । एक तरफ तो धूप दूसरी तरफ शाम होने जैसी अनुभूति । एक ही साथ हम दो वक़्त होते देख रहे थे । ऐसा लग रहा था जैसे इन पहाड़ों की चोटियों को सिर्फ हमारे लिए सजाया हो प्रकृति ने ,जिसके लिए हमारे पास वक़्त नहीं हैं । लेकिन अब कुछ दिन तो यहीं बिताना है ऐसा सोंचकर हम आगे बढ़ते रहे . अब हमारा अगला पड़ाव था "नक्की झील " । पहाड़ों कि सुरम्य वादियाँ , उसके बीच स्थित झील में बोटिंग करना बेहद रोमांचकारी अनुभव था , जिसे सिर्फ वहाँ जाकर ही महसूस किया जा सकता है ।
बोटिंग करने के बाद अब हमने जहां का रुख किया वो तो अपने आप में अजूबा है । मेरे विचार से पर्यटन की अपार सम्भावना अपने में समेटे "जैन दिल्वारा मंदिर " । ये मंदिर सन १२३१ में बनकर तैयार हुआ था , और आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि उस समय इसकी लागत "१२ करोड़" रूपए थी । मंदिर कि दीवारों, छतों यहाँ तक कि प्रतेक कोने कि शिल्पकला प्रशंसा के लिए सहज ही आपको विवश कर देगी । मंदिर में कैमरा ले जाना मना था अतः वहा की शिल्प कला मानस पटल पर अंकित हो गयी और हमेशा रहेगी ।
इसके अलावा पहाड़ों कि वादियों पर बनाए गए पार्क , जो बेहद सुकून भरे स्थानों में से हैं । सचमुच बेहद खूबसूरत और लगभग अवर्णनीय है यह हिल स्टेशन।